रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखोतुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखोखड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभीतुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखोउभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगीउजालों में रहो मत धुंध का हिसाब रखोमिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हेंमहक वंफा की रखो और बेहिसाब
रखो